कहानियाँ

हमारे इर्द-गिर्द हर समय असंख्य कहानियाँ बन रही होती हैं। इनका अपना ही एक रास्ता, अपना ही एक कारवां होता है। रास्ते-भर वे बनती-बिगड़ती रहती हैं। जब कभी वे पहली बार कही जाती हैं, तब किसी को नहीं पता होता कि ये कहानियाँ कितनी दूर तक फैलेंगी।

जैसे गंगोत्री को नहीं पता रहता, कि गंगा आगे चलकर कहां-कहां बहेगी। कितने-कितनों का उद्धार करेगी, कितनों के संहार की साक्षी बनेगी। उसे तो बस फूट जाना होता है। तब, जब बर्फ़ की चट्टानें अब और बर्फ़ बनकर नहीं रह सकतीं। तब, जब गर्मी अपनी पूरी ताकत से उसको पिघला देना चाहती है। फिर जब वो बहती है, तो न जाने कितनी और कहानियाँ संग हो लेती हैं। उसके प्रवाह में न जाने कितने किरदार घुलते-मिलते जाते हैं। और फिर एक दिन यही कहानियाँ अपने तमाम किरदारों के साथ अथाह समुद्र में समाहित हो जाती हैं। हमेशा के लिए।

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