Category: विराट विचार

  • छोटी-छोटी आज़ादियाँ

    लाखों सूर्यास्त देख पाना हम में से किसी के बस की बात नहीं है। एक समय आएगा, जब हम थक चुके होंगे, हार चुके होंगे। हम अलविदा कहना चाहेंगे, इस उसूलवादी प्रकृति को, जो सूरज के लगातार उदय और अस्त होने के अपने उसूल से तब तक भी टस से मस न हुई होगी। हम प्रकृति के इस चक्र से मुक्त हो जाना चाहेंगे, और वहाँ जाना चाहेंगे, जहां ज़िंदगियाँ निर्बाध रूप से पनप रही होंगी। जहां ऐसे कोई नियम-कायदे नहीं होंगे, कि दिन के बाद रात ही हो। ऐसे किसी जहान में प्रकृति काफ़ी लचीली होगी, हमें भरपूर आज़ादियाँ देगी, अपनी जटिलताओं में बांधेगी नहीं। वो बस हमारे होने भर को तवज्जो देगी। हमें मनमर्जियों से उमड़ जाने को कहेगी।

    कुछ भी हो, हमारी प्रार्थना तो फिर भी यही रहेगी, कि हम में से हर एक, अनगिनत सूर्यास्त देख पाने का साहस ले कर चले। उसूलवादी प्रकृति को अपनाए, और सूरज के लगातार उदय और अस्त होने के बीच ही अपनी छोटी-छोटी आज़ादियाँ ढूंढ लिया करे।

  • वो तो जश्न मनाएगा

    एक अरसे बाद शिखर तक कोई पहुंच पाया है। आज स्वयं शिखर को इस बात पर बड़ा नाज़ हो रहा है। शिखर को अपने होने का आभास ही अब हुआ है। वरना तो यहां ज़िंदगी वीराने में ही कट रही थी। हरियाली तो जैसे यहाँ तक पहुँच ही नहीं पाती है। शिखर अपनी बर्फ़ानी सफ़ेद छाती चौड़ी किये यों ही दिन-रात तन कर रहा करता है। उसका जीवन पत्थर के माफ़िक कठोर हो चला है। इतना कठोर, कि कभी-कभी उसे पिघल जाने का मन करता है। मन करता है कि वो भी कभी नदियों की तरह इठलाए, बलखाए। मन करता है, कि वो बह के मैदानी इलाकों के उन खेतों में जाए, जहां हरी-भरी फसलें लहलहाया करती हैं। जहां नमी पाकर कोंपलें फूटा करती हैं।

    खैर इन बातों को शिखर पर पहुंचने वाला कभी नहीं समझ पाएगा। आज उसकी जीत हुई है, वो तो जश्न मनाएगा।