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  • कहानियाँ

    हमारे इर्द-गिर्द हर समय असंख्य कहानियाँ बन रही होती हैं। इनका अपना ही एक रास्ता, अपना ही एक कारवां होता है। रास्ते-भर वे बनती-बिगड़ती रहती हैं। जब कभी वे पहली बार कही जाती हैं, तब किसी को नहीं पता होता कि ये कहानियाँ कितनी दूर तक फैलेंगी। जैसे गंगोत्री को नहीं पता रहता, कि गंगा…

  • समय नहीं रहेगा

    कोई दसियों बरस बाद शहर को क़रीब से देखने निकला। ग़ौर किया तो पाया कि घरों के बरामदे गुम हो चले हैं। और उन बरामदों में दोपहर के वक्त पड़ने वाली वो मझली-सी धूप भी। अब वहां छांव ही छांव है। अंधेरे का आभास न हो, इसके लिए एक छद्म रोशनी कर रखी है। वक्त-बेवक्त…

  • अनकहा

    शामों को कौन कहता है कि वे क्षितिज पर अपनी नारंगी छटा बिखेरें? कौन सूरज को आदेश देता है कि वह अपनी विदाई को सुर्ख रंगों में रंग दे? हवा को कौन बताता है कि वह मंद होते प्रकाश में धीमे-धीमे बहने लगे, और पत्तों को कौन सिखाता है कि वे हल्की सरसराहट के साथ…

  • भीड़ में अकेला

    भीड़ से भरी इस गली में, अनजाने चेहरों के बीच मैं अकेला चला जा रहा हूँ। चेहरे तो हैं, मगर दिख कहाँ रहे हैं? डूबता सूरज ठीक आँखों की सीध में उतर आया है, उसकी तेज़ रोशनी सबको धुंधला कर रही है। रोशनी से जगमगाती विदेशी सड़कें, अजनबी भाषा में गूंजती आवाज़ें… मगर मन कहीं…

  • जीवन ऐसा ही है

    और फिर कुछ दिन ऐसे होते हैं, जब आप दुनिया से थोड़ा ऊपर उठना चाहते हैं, किसी ऊंचे स्थान पर जाकर बैठना चाहते हैं, जहां आप वास्तव में दुनिया से उपराम होने का एहसास कर सकते हैं।

  • छोटी-छोटी आज़ादियाँ

    लाखों सूर्यास्त देख पाना हम में से किसी के बस की बात नहीं है। एक समय आएगा, जब हम थक चुके होंगे, हार चुके होंगे। हम अलविदा कहना चाहेंगे, इस उसूलवादी प्रकृति को,